पूर्णिया: फाइलेरिया ग्रसित होने वाले मरीजों की पहचान करते हुए संभावित मरीजों को पूर्व में ही चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराते हुए फाइलेरिया ग्रसित होने से सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी जिले में साल में एक बार नाईट ब्लड सर्वे अभियान चलाया जाता है। इस दौरान चिन्हित क्षेत्रों में कैम्प आयोजित कर क्षेत्र के सामान्य लोगों का ब्लड सैंपल लेते हुए ब्लड सैंपल में शामिल माइक्रो फाइलेरिया कीटाणु की पहचान की जाती है।
नाईट ब्लड सैंपल लेते हुए उसमें उपस्थित माइक्रो फाइलेरिया की पहचान करने के लिए कटिहार जिले के सभी प्रखंड के लैब टेक्नीशियन को राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (जीएमसीएच) के माइक्रो बायोलॉजिस्ट डॉ स्मिता कुमारी द्वारा एकदिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान सभी लैब टेक्नीशियन को माइक्रो फाइलेरिया की पहचान के लिए सही तरीके से ब्लड सैंपल की जांच करते हुए उसमें छिपे फाइलेरिया कीटाणु की पहचान करने की जानकारी दी गई। इस दौरान जीएमसीएच माइक्रो बायोलॉजी की हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ स्मिता कुमारी, जीएमसीएच पैथोलोजिस्ट, जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ आर पी मंडल, पिरामल स्वास्थ्य जिला लीड चंदन कुमार सहित कटिहार जिले के चिन्हित प्रखंडों के लैब टेक्नीशियन उपस्थित रहे।
सही ब्लड सैंपल लेकर माइक्रोस्कोप में जांच करने से होती है शरीर में शामिल माइक्रोफाइलेरिया की पहचान :
सभी लैब टेक्नीशियन को प्रशिक्षित करते हुए जीएमसीएच को माइक्रो बायोलॉजिस्ट हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ स्मिता कुमारी ने कहा कि क्यूलेक्स मादा मच्छरों द्वारा फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को काटने पर उसके शरीर में शामिल फाइलेरिया के कीटाणु मच्छर के डंक में उपलब्ध हो जाते हैं। उसके बाद उसी मच्छर द्वारा दूसरे सामान्य व्यक्ति को काटने के दौरान उसके डंक में उपलब्ध फाइलेरिया के कीटाणु उनके खून में शामिल हो जाते हैं। समय के साथ सामान्य व्यक्ति के शरीर में शामिल फाइलेरिया कीटाणु की संख्या में विकास होने लगता है और संबंधित व्यक्ति फाइलेरिया से ग्रसित हो जाते हैं। ग्रसित व्यक्ति के खून में उपलब्ध फाइलेरिया के कीटाणु रात में ही एक्टिव अवस्था में पाए जा सकते हैं जब लोग दैनिक कार्य से मुक्त होकर आराम अवस्था में रहते हैं। रात में ही 20 वर्ष से अधिक उम्र के सामान्य व्यक्ति का ब्लड सैंपल संग्रहित करते हुए जांच करने पर उसमें उपलब्ध फाइलेरिया कीटाणु की पहचान हो सकती है। फाइलेरिया कीटाणु की पहचान के लिए लोगों का ब्लड सैंपल सही तरीके से लेना आवश्यक है। फाइलेरिया की पहचान के लिए सामान्य व्यक्ति के ब्लड सैंपल लेते समय खून की लंबाई 30mm और चौड़ाई 20mm होना आवश्यक है। रात में ब्लड सैंपल एकत्रित करते हुए उसका 24 घंटे में जांच करने से ब्लड में उपलब्ध माइक्रो फाइलेरिया की पहचान हो सकती है। माइक्रो फाइलेरिया की पहचान होने पर उन्हें तत्काल चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराने से संबंधित व्यक्ति फाइलेरिया ग्रसित होने से सुरक्षित रह सकते हैं।
रात 08:30 बजे के बाद शरीर में एक्टिव होता है माइक्रो फाइलेरिया :
डॉ स्मिता कुमारी ने कहा कि दिन के समय में शरीर एक्टिव रहने के कारण खून में शामिल फाइलेरिया के कीटाणु सुप्त अवस्था में रहते हैं। इस समय खून जांच करने पर उसमें शामिल माइक्रो फाइलेरिया कीटाणु की पहचान नहीं हो सकती है। शरीर के आराम स्थिति में होने पर फाइलेरिया कीटाणु एक्टिव हो जाते हैं। इसलिए रात में ब्लड सैंपल लेते हुए माइक्रोस्कोप से जांच करने पर उसमें शामिल फाइलेरिया कीटाणु की पहचान किया जा सकता है। इसलिए फाइलेरिया ग्रसित मरीजों की पहचान के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा रात 08:30 बजे के बाद ही नाईट ब्लड सर्वे का आयोजन करते हुए लोगों का ब्लड सैंपल एकत्रित किया जाता है। इसके लिए कांच की स्लाइड एकत्रित करते हुए उनमें सामान्य व्यक्ति के बाएं हाथ की तीसरी अंगुली से रोलिंग क्रिया का उपयोग करते हुए ब्लड की 2-3 बड़ी बूंदों को कांच की स्लाइड में एकत्रित करना चाहिए। एकत्रित ब्लड सैंपल को 24 घंटे के अंतर स्टैनिंग किया जाना है जिससे ब्लड में उपलब्ध माइक्रो फाइलेरिया की पहचान माइक्रोस्कोप द्वारा हो सकता है। माइक्रो फाइलेरिया कीटाणु की पहचान होने पर उन्हें आवश्यक मेडिकल सहायता प्रदान करते हुए सुरक्षित किया जा सकता। लंबे समय तक फाइलेरिया के कीटाणु शरीर में उपलब्ध रहने पर संबंधित अंग में सूजन होने लगता है जिसका संपूर्ण इलाज करते हुए सुरक्षित नहीं किया जा सकता है।
फाइलेरिया से सुरक्षित रहने के लिए चलाया जाता है सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम :
पिरामल स्वास्थ्य जिला लीड चंदन कुमार ने बताया कि नाइट ब्लड सर्वे द्वारा सभी प्रखंडों के चिह्नित क्षेत्रों में फाइलेरिया मरीज की पहचान की जाती है। नाइट ब्लड सर्वे जांच में अगर संबंधित प्रखंड में एक प्रतिशत व्यक्ति के ब्लड सैंपल में माइक्रो फाइलेरिया की पहचान होती है तो पूरे प्रखंड में इससे अन्य लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) कार्यक्रम चलाया जाता है। इसके तहत स्थानीय आशा कर्मियों द्वारा घर-घर जाकर दो वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को दवाई खिलाई जाती है। कम से कम पांच साल तक नियमित एमडीए कार्यक्रम के तहत दवा सेवन करने से लोग फाइलेरिया ग्रसित होने से सुरक्षित रह सकते हैं। इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को नाइट ब्लड सर्वे द्वारा अपने फाइलेरिया की पहचान करवानी चाहिए और फाइलेरिया से सुरक्षित रहने के लिए सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम के तहत उपलब्ध दवाइयों का सेवन कर फाइलेरिया से सुरक्षित रहना चाहिए।