समस्तीपुर: बिहार के सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों के पदस्थापन और स्थानांतरण नीति काफी दोषपूर्ण है।
इस आशय से संबन्धित प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के राज्य कार्यकारिणी समिति सदस्य अरविन्द कुमार दास ने कहा कि सरकार शिक्षकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने की शाजिस से बाज नहीं आ रही है। पुरुष शिक्षकों के लिए गृह अनुमंडल से बाहर पदस्थापित करना मानसिक दिवालियापन और संवेदनशून्यता का परिचायक है। रोसड़ा अनुमंडल का सुदूर प्रखण्ड बिथान का पंचायत सलहा चन्दन की दूरी दलसिंहसराय या समस्तीपुर अनुमण्डल के लिए सत्तर से अस्सी किलोमीटर है। लगभग यही हालत समस्तीपुर, दलसिंहसराय और पटोरी अनुमंडल का भी है। इस नीति से पूरे बिहार के शिक्षक और शिक्षिकाओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। पति – पत्नी के लिए भी तबादला नीति भ्रामक है। पति अनुमंडल के बाहर पदस्थापित होंगे और पत्नी उनके साथ स्थानांतरित होगी, यह वही तीन पसेरी पन्द्रह सेर वाली कहावत को चरितार्थ करती है। मेधा के आधार पर आवेदन लेना विभागीय अधिकारियों की मनमानी को दर्शाता है। यह नीति उदारतापूर्ण नहीं बल्कि अव्यावहारिक है। एक तरफ आवेदन नहीं करनेवाले शिक्षकों को उसी विद्यालय में रहने दिया जायेगा तो दूसरी तरफ सक्षमता परीक्षा उत्तीर्ण शिक्षकों को अनुमंडल से बाहर स्थानांतरित करना उन्हें परीक्षा देने की सजा देने के बराबर है। इस प्रकार की भेदभावपूर्ण नीति के बदले सरकार को उसी विद्यालय में रहने दिया जाय या गृह प्रखण्ड के बाहर पदस्थापित किया जाना चाहिए। विभागीय अधिकारियों और सरकार के द्वारा इस बात का ख्याल नहीं रखा गया है कि अरवल, जहानाबाद, जमुई, लखीसराय, बांका, शेखपुरा, किशनगंज, शिवहर जैसे एक अनुमंडलीय जिला के शिक्षक कहां आवेदन करेंगे। उन्होंने सरकार और शिक्षा विभाग से मांग है कि है हितबद्ध शिक्षक संगठनों से वार्ता कर दोषपूर्ण पदस्थापन तथा स्थानान्तरण नीति को वापस लेते हुए शिक्षक-शिक्षा हितैषी नीति लाई जाए। अन्यथा मजबूर होकर बिहार के सभी कोटि के शिक्षक संघ ऐतिहासिक और निर्णायक संघर्ष की शुरुआत करेंगे, जिसकी सारी जबावदेही सरकार की होगी।