पटना : रविंद्र भवन में अनिल कुमार सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन एवं मोंटेसरी स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है।
यह आयोजन मोंटेसरी स्कूल की स्थापना के 50 वें वर्ष के उपलक्ष्य में किया गया है।
कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह, संतोष आनंद, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार सिंह आदि ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
इससे पूर्व उन्होंने सभी कवियों को शॉल एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संयोजन कॉग्रेस नेता सूरज सिन्हा ने किया । खचाखच भरे हाल में श्रोता संतोष आनंद को सुनने आए थे। तुम ही से मिलने आया हूं तुम ही पर जान देने आया हूं आखिरी वक्त है इम्तिहान देने आया हूं। लड़खड़ाती जुबान, काँपता शरीर, व्हील चेयर पर बैठे संतोष आनंद जब मंच पर आए और इन पंक्तियों को गुनगुनाया तो समस्त श्रोता खड़े होकर गीतों के ऋषि का स्वागत किया। उम्र के नवे दशक में प्रवेश कर चुके संतोष आनंद को देखने मात्र से ही पटनावासी को सिर्फ गर्व का अनुभव हो रहा था । जब उन्होंने अपने गीत जिंदगी की ना टूटे लड़ी सुनाया तो लोग मदहोश हो चुके थे। उन्होंने फिर दोहराया आज से अपना वादा रहा हम मिलेंगे हर एक मोड़ पर इन पंक्तियों को सुनकर लोग भाव विह्वल हो रहे थे।
उन्होंने दोहराया कि तुम साथ ना दो मेरा चलना मुझे आता है हर आग से हूं वाकिफ जलना मुझे आता है घर फूंक दिया हमने अब राख उठानी है। गीतों की रस धारा में पूरा रविंद्र भवन डूब चुका था, लोग वाह और तालियों की गड़गड़ाहट से कवियों का मान सम्मान बढ़ा रहे थे। संतोष आनंद ने फिर दोहराया कोई फर्क नहीं होता राजा और भिखारी में दोनों की सांस काटी है समय की तेज कटारी ने । इससे पूर्व दरभंगा से आई श्रृंगार रस की कवियत्री डॉ. तिष्या श्री ने सरस्वती वंदना से कवि सम्मलेन की शुरुआत की। उसके बाद ने अपनी प्रेम की कविता मुहब्बत की जो मंज़िल है उसी मंज़िल में रह लेना………. जहां हर साज़ बजता हो उसी महफ़िल में रह लेना जैसी कविताओं का पाठ किया । प्रतापगढ़, राजस्थान से आए देश के नामचीन पैरोडी गीतकार पार्थ नवीन ने गीत गाया दगाबाज रे…. हमरे नेता बड़े दगाबाज रे… वाह रे नेता प्यारे….. गाड़ी हैं बंगले हैं वारे न्यारे पब्लिक के पैसों पर नजर डाले’ का पाठ कर सबको खूब हँसाया ।
संचालन कर रहे सूरज सिन्हा ने जब अपनी कविता मां किस्सा है, मां परिवार का अभिन्न हिस्सा है….. मां दया की मूरत है…. मां से अच्छी नहीं कोई सूरत हैं का पाठ किया तब तालिया की गड़गड़ाहट से समूचा हाल समर्थन दे रहा था। अलीगढ़ से आयी कवियत्री मुमताज़ नसीम ने अपनी प्रेम की कविता सारी गम भूल जाओगे वादा करो….. आप खुशियाँ मनाओगे वादा करो.. आप भी लौट आओगे वादा करो सुनाया तो सभागार में उपस्थित लोग वाह वाह करने लगे । नई दिल्ली से आए हास्य कवि शंभू शिखर ने अपनी कविता में बिहारी अस्मिता और बिहारी पहचान को सबके समक्ष खूब सुनाया। उन्होंने कहा कि बिहार होना शान है क्योंकि ऐसा कोई राज्य नहीं जिसे इतना समृद्ध इतिहास रहा है। फिर उन्होंने अपनी कविता हम श्रम नायक हैं भारत के… और मेधा के अवतारी हैं…. हम सौ पर भारी एक पेड़… हम धरतीपुत्र बिहारी हैं सुनाया तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा ।